Wednesday, January 6, 2010

अगर मै शब्द होती...
तुम खेलते मुझसे
और मै खिल उठती तुम्हारी रचना के नए रूपमे
तुम मुझे सोचते, समजते, मेरे माइने जानते
और हर बार नए माइनो में मुझे पेश करते
मै ही तो होती तुम्हारा काम, तुम्हारा नाम,
तुम्हारी सोच और
जरिया तुम्हारे खयालो को बयां करने का
मेरा हर नया रूप बनता वजह तुम्हारी पहचानका
तुम्हारे धन और आराम भी तो मुझी से होते
दुनिया तुम्हे मेरे ज़रिये जानती, सराहती,
आसमान पे बिठाती
तुम जानते मेरी अहमियत और शायद,
इसी लिए खोये रहते मुझमे
कोई नहीं रचना के बारे में सोचते हुए
तुम मुझे पढ़ते, लिखते और अपने होठों से बयां करते
इतराते ये सोचकर के मै तुम्हारे साथ हूँ
अगर मै शब्द होती...
Lovely eve...

One day...
We went together,
We talked, laughed,
And worked together
On that eve,
We came closer
His beard cheeks
Touched my neck
I turned shy
He held my face
And embraced me
Whispered near my ears
O dear! Allow me to kiss your lips
I smiled, he did...
Unconcerned about the people around us...
Whispered again,
This is what I never knew...
U made it possible my charming!
The way ended
We had to leave
We left unwantedly...
I still remember
That late night I came to your city
That was unknown for me
There were no mobiles to contact
I was feared that I would not find u
Someone told your last bus has gone
I was about to cry and…
I saw u,
I run towards u and hugged u like a child
I learned to hug first when I met u
I felt so secured in your arms
And till the date that feeling of security
Has become the strong bond of
Our relationship
Wherever you are
Far or nearer
You are always present
In my heart as
A feeling of security
फूल सी नाज़ुक है वो
खिलखिलाती है वो
लडखडाती चले
मुस्कुराती आये
मम्मा मुझको बुलाये
गाना देख वो खाए
रात मुझको जगाये
खिलौने उसको न भाए
थाली चम्मच बजाये
कच्ची सब्जी भी खाए
चाय चखने वो आये
सु सु करके खेले
आइना देखकर मुस्कुराती है वो
मेरी सारी किताबे गिराती है वो
उसको कचरे का डब्बा लगे है प्यारा
पुरे घरमे यूँ कचरा फैलाती है वो
अपने पापा की छाती से चिपके है वो
अपने भैया के पीछे जो भागे है वो
कुत्ता देख के कुद्के लगाती है वो
जब भूख लगे खूब चिल्लाती है वो
रसोई में हल्ला मचाती है वो
कांच की बर्नियों को गिराती है वो
डायनिंग टेबल के निचे छुप जाती है वो
टीवीमें एड देख खिलखिलाती है वो
हरे मटर के दानो से खेले है वो
अपनी मम्मा की जुल्फों से खेले है वो
अपने हाथों से आँखें मसलती है वो
फिर धीरे से सपनो में खोती है वो
सुबह हसती हुई फिर से जगती है वो
ऐसे दुनिया मेरी रौशन करती है वो
ऐसा मुझको खिलाये
ऑफिस को देर कराये
रोज नए नखरे है
तौबा वो क्या कहने है
सुबह की किरन है वो
मेरा उजाला है वो
मेरी प्यारी है वो, मेरी बेटी है वो
मेरे सपनो की जैसे रंगोली है वो