अगर मै शब्द होती...
तुम खेलते मुझसे
और मै खिल उठती तुम्हारी रचना के नए रूपमे
तुम मुझे सोचते, समजते, मेरे माइने जानते
और हर बार नए माइनो में मुझे पेश करते
मै ही तो होती तुम्हारा काम, तुम्हारा नाम,
तुम्हारी सोच और
जरिया तुम्हारे खयालो को बयां करने का
मेरा हर नया रूप बनता वजह तुम्हारी पहचानका
तुम्हारे धन और आराम भी तो मुझी से होते
दुनिया तुम्हे मेरे ज़रिये जानती, सराहती,
आसमान पे बिठाती
तुम जानते मेरी अहमियत और शायद,
इसी लिए खोये रहते मुझमे
कोई नहीं रचना के बारे में सोचते हुए
तुम मुझे पढ़ते, लिखते और अपने होठों से बयां करते
इतराते ये सोचकर के मै तुम्हारे साथ हूँ
अगर मै शब्द होती...
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